माँ को मरे हुए ३ महिने बीत चुके थे सर्दि के दिन चल रहे थे, एक रात जब खाना खाने के बाद मैं सोने के लिए खटिया पर गयी तो बापुजी को खोया हुआ देखकर मुझसे रहा नहीं गया । "मैंने बापू जी से पुछा की आप मम्मी के गुज़रने के बाद बुहत उदास रहते हो क्या बात है?" ।
बापु जी मेरा सवाल सुनकर चौंकते हुए मेरी तरफ गौर से देखते हुए बोले "बेटी तुम अब जवान हो चुकी हो इसीलिए तुम्हें मालूम होना चाहिए की औरत और मरद का आपस में क्या रिश्ता होता है, जब मरद और औरत शादी करते हैं तो वो आपस में क्या करते हैं"।
मैं उस वक्त बापु जी की बात बड़े गौर से सुन रही थी, क्योंकी उस वक्त मुझे मालूम नहीं था की मरद के पास लंड और औरत के पास चूत होती है जिसका उपयोग वह शादी के बाद करते हैं ।
बापु जी ने आगे कहा "बेटी जब कोई मरद किसी औरत से शादी करता है तो वह अपना लंड जो यहाँ होता है (अपनी धोती की तरफ इशारा करते हुए) उस औरत की चूत जहाँ से तुम पेशाब करती हो वहां डालता है, जिससे मरद और औरत दोनों को बुहत मजा आता है" बापू ने मुझे समझाते हुए कहा ।
मैं बड़े गौर से बापू की तरफ देख रही थी, उनकी धोती में मुझसे बात करते हुए बुहत बड़ा उभार बन चूका था । मुझे उस वक्त पता नहीं था की वह मेरे बापु का लंड था जो अपनी बेटी को गन्दी बातें बताते हुए खडा हो चुका था ।
"बेटी जब मरद औरत की चूत में इसे डालता है तो मज़े की चरम सीमा तक पहचने के बाद इसमें से वीर्य निकलता है जिस से औरत गारभवती होती है और मरद को बुहत मजा आता है । अब जब तुम्हारी मम्मी मर चुकी है तो हमारा लंड हमें बुहत तँग करता है, इसी लिए हम उदास है"।
बापु जी की बात सुनने से मुझे अपने जिस्म में अजीब गुदगुदी महसूस हो रही थी, मुझे उस वक्त पता नहीं था की मैं एक जवान लड़की हूँ जिसको अपने बाप के मूह से लंड और चूत के शब्द सुनने से उसकी चूत से पानी बह रहा है ।
"बापु जी जो सुख आप को माँ देती थी क्या मैं दे सकती हूँ?" मैंने बापू जी की बात सुनने के बाद मासूमियत से कहा।
"हा बेटी तुम वह हर सुख दे सकती हो, पर तुम मेरी बेटी हो" बापू जी ने मुझे समझाते हुए कहा ।
"तो क्या हुआ बापू हम आपको ऐसे उदास नहीं देख सकते" मैंने बापु जी से कहा । कंचन उस वक्त मुझे सेक्स का कोई ज्ञान नहीं था, हम गाँव में ही रहते थे और १० तक वहीँ पढे थे । हमें पता नहीं था की हम कितना बड़ा पाप कर रहे हैं ।
"मगर बेटी यह सब गलत है" बापु जी फिर से कहा।
"हम कुछ नहीं जानते, हमें अपने बापू जी को खुश देखना है" हम ने ज़िद करते हुए कहा।
"ठीक है बेटी मगर यह कभी किसी को नहीं बताना" बापू जी ने मेरी तरफ एक मरद की नज़र से देखते हुए कहा।
"ठीक है बापु जी हम किसी को नहीं बताएंगे" मैंने खुश होते हुए कहा ।।।। मुझे क्या पता था की मैं अपने पाँव पर खुद कुल्हाड़ी मार रही हूं, बापू मेरी बात सुनकर अपनी चारपाई से उठते हुए मेरी चारपाई पर आकर बेठ गये ।
बापु जी सिर्फ एक धोती में थे, वह क़रीब बैठते ही मेरी तरफ गौर से देखते हुए मेरा सर अपने हाथों में पकड लिये और अपने गरम होंठ मेरे होंठो पर रख दिये, बापू जी के होंठ अपने होठो पर महसूस होते ही मेरे सारे शरीर में चींटियाँ रेंगने लगी ।
बापु हमारे होंठो को कई मिनटों तक चूसते रहे, पहले तो मुझे अजीब लगा मगर थोडी देर में मुझे बुहत अच्छा लगने लगा । बापू जी जैसे जैसे मेरे होंठो को चूसते जा रहे थे। मुझे सारे शरीर में अजीब किस्म के मज़े का अहसास हो रहा था ।
बापु जी ने अचानक अपने होंठ हमारे होंठो से हटा दिये और मुझसे कहा "बेटी अगर पेशाब लगी है तो करके आजा" । मैं हैंरान थी के बापू जी को कैसे पता लगा की मुझे पेशाब आई है, मैं बाथरूम में जाकर मूतने लगी।
मुझे ऐसा महसूस हो रहा था की मुझे बुहत ज़ोर की पेशाब लगी है । मगर जब मैं अपनी कच्छी को नीचे करते हुए मूतने बैठी तो मेरी छूट से थोडा ही पेशाब निकला, मैंने बुहत ज़ोर लगाये मगर कोई फ़ायदा नहीं हुआ ।
मुझे अपनी चूत में बुहत ज़ोर की सिहरन हो रही थी । मैंने अपने हाथ से जैसे ही अपनी चूत को छुआ। मैं हैंरान रह गयी मेरी चुत बुहत गीली थी, मैं वहां से उठते हुए अपनी खटिया की तरफ जाने लगी । बापू जी ने मुझे देखकर खटिया से उठते हुए मुझे खटिया के पास ही रोक लिया ।
बापु ने मेरी साड़ी को पकड कर उतार दिया । मैं अब सिर्फ पेटिकोट और पेंटी में बापू जी के सामने खडी थी, बापू मेरे आधे नंगे गोरे जिस्म को देखते हुए खटिया पर बैठ गए और मुझे कमर में हाथ ड़ालते हुए अपने क़रीब कर लिया ।
मैं खडी थी इसीलिए मेरा नंगा पेट बापू के मुँह के सामने आ गया । बापू ने अपने होंठ मेरे नंगे पेट पर रख दिया और मेरे सारे पेट को बेतहाशा चूमने लगे, मेरा नंगे पेट पर बापू के होंठ पड़ते ही मेरे सारे शरीर में झुरझुरी होने लगी।
बापु ने मेरे पेट को जी भरकर चूमने के बाद मुझे कमर से पकड कर उल्टा कर दिया । बापू मेरे उलटे होते ही मेरे चूतड़ों को अपने हाथों से दबाने लगे, बापू के हाथ अपने चुतड़ों पर लगते ही मुझे अपनी चूत में ज़ोर की सनसनाहट होने लगी ।
बापु ने मेरे चुतडो को थोडी देर दबाने के बाद मुझे उल्टा ही अपनी गोद में बिठा दिया । बापु की गोद पर बैठते ही मुझे अपने चूतडों में कोई मोटी चीज़ चुभने लगी, मैं उस चीज़ के चुभने से सही से बैठ नहीं पा रही थी ।
बापु जी समझ गए के उनका लंड मुझे चूभ रहा है इसी लिए उसने मुझे थोडा उठा कर अपना लंड पीछे कर दिया । मुझे अब चुतडो में कुछ महसूस नहीं हो रहा था मगर मेरे गाण्ड के ऊपर वह चीज़ महसूस हो रही थी।
बापु ने अपने होंठो से मेरी पीठ को चूमते हुए मेरा पेटिकोट उतार दिया और अपनी जीभ से मेरी चिकनी गोरी पीठ को चाटने लगे । बापु ने मेरी पीठ को चाटते हुए मेरी ब्रा को भी उतार दिया और अपने हाथ आगे करते हुए मेरी ३६ की गोल चुचियों को पकड़ लिया।
बापु का हाथ अपनी नंगी चुचियों पर पडते ही मेरी साँसें बुहत ज़ोर से चलने लगी । बापु धीरे धीरे मेरी चुचियों को सहला रहा था और मैं मज़े से बुहत ज़ोर की साँसें ले रही थी, मुझे अपने पूरे शरीर में बुहत ज़ोर की उत्तेजना हो रही थी ।
बापु ने मेरी चुचियों को सहलाते हुए मुझे अपनी गोद से उठाते हुए खटिया पर सीधा लेटा दिया । बापू मेरे ऊपर आते हुए अपना मूह मेरी चुचियों पर रखकर उन्हें चूमने लगे, बापू जी की हरक़तों से मुझे अपनी चूत में बुहत ज़ोर की सिहरन हो रही थी ।
बापु ने मेरी चुचियों को चूमते हुए अचानक मेरी एक चूचि के गुलाबी निप्पल को अपने मूह में भर लिया और उसे ज़ोर से चूसते हुए मेरी दूसरी चूचि को अपने होठ से सहलाने लगे । बापु मेरी चूचि को बुहत ज़ोर से चूस रहे थे जैसे मेरी चुचियों का वह दूध पी रहें हो ।
मुझे अपनी चूचि चुसवाते हुए अपनी चूत में बुहत ज़ोर की सनसनाहट हो रही थी ।
"बापु जी हमें अपनी चूत में कुछ हो रहा है" मेने उत्तेजना के मारे बापु से कह दिया।
"पहले हमें अपनी बच्ची का मीठा दूध तो पी लेने दो" बापू ने अपना मूह मेरी चूचि से हटाते हुए कहा।
"बापु जी हमारी चुचियों में दूध किधर है जो आप पी रहे हो ?" मैंने हैंरान होते हुए बापू से पुछा।
"बेटी दूध से ज़्यादा मीठी तो तुम्हारी कुंवारी चुचियां है" बापू ने जवाब दिया ।
बापु हमारी दोनों चुचियों को बारी बारी चूसने के बाद नीचे होते हुए मेरी पेंटी तक आ गये।
"बेटी कहाँ तकलिफ हो रही है?" बापू ने मेरी गीली पेंटी को सूँघते हुए कहा "बापु जी हमारी कच्छी के अंदर" मैंने बापू को बताया ।
"बेटी तुम्हारी चूत की गंध तो बुहत बढ़िया है" बापू जी ने अपनी साँसें ज़ोर से पीछे खिचते हुए कहा । बापू जी ने यह कहते हुए मेरी कच्छी में हाथ ड़ालते हुए उसे उतारने लगे, मैंने अपने चूतड़ उठाते हुए मेरी कच्छी उतारने में बापू की मदद की ।
"वाह बेटी तुम्हारी चूत तो बुहत गोरी और फूली हुई है, तुम्हारी माँ की तो काली थी" बापू ने मेरी हलके बालों वाली गोरी चूत को देखते हुए कहा । बापू ने मेरी दोनों टांगों को अपने हाथों से चौडा कर दिया।
"हमारी बेटी की चूत से तो पानी निकल रहा है, इसी लिए तो तुम्हें यहाँ पर कुछ हो रहा था" बापू ने मेरी टांगों को चौडी होते ही मेरी चूत की तरफ देखते हुए कहा।
"हमारी बेटी तो बिलकुल जवान हो चुकी है, तुम्हें अपनी चूत में इसीलिए कुछ हो रहा है क्योंकि इसे अब अपने अंदर एक लंड चाहिए बेटी।जो इस की खुजलि को ख़तम कर सके" बापू ने मेरी टांगों को घुटनों तक मोडते हुए कहा । बापू ने मेरे चुतडो के नीचे एक तकिया दे दिया जिसकी वजह से मेरी चूत खुलकर ऊपर हो गई।
बापु ने नीचे झुकते हुए अपने होंठ मेरी चूत के दोनों पतले लबों पर रखते हुए उसे चूसने लगा।
बापु के होंठ मेरी चूत पर पडते ही मेरा सारा शरीर कम्पने लगा और मैंने चील्लाते हुए बापू से कहा।
"आह्ह्ह्ह बापू जी हमें वहां कुछ हो रहा है"
बापु ने मेरी बात सुनते ही अपना मूह खोल कर मेरी चूत के होंठो को अपने मूह में भर लिया और उन्हें ज़ोर से चूसते हुए अपने दुसरे हाथ से मेरी चूत के दाने को रगडने लगे । बापू जी की यह हरकत मुझसे बर्दाशत नहीं हुए और मेरी चूत ज़ोर के झटके खाते हुए अपना पानी छोड़ने लगी ।
"ओहहहह बापू जी इस्स्स्सस्ठ अपना मूह हटा लो। हमने पेशाब कर दिया । आह्ह" में झरते हुए अपनी आँखें बंद करके बुहत ज़ोर से चिल्ला रही थी । मुझे उस वक्त पता नहीं था की यह मेरा पहले ओर्गास्म है, मुझे लगा था के मेरी छूट से पेशाब निकल रही है ।
बापु मेरी चुत से निकलता हुआ सारा पानी चाटने लगा । मेरी चूत से इतना पानी निकला था की बापू का सारा चेहरा भीग चूका था । थोड़ी देर बाद जैसे ही मेने आँखें खोली बापू जी मेरी चूत को ही चाट रहे थे, उसकी नज़र जैसे ही मुझ पर पडी उसने कहा।
"बेटी अब कैसा लग रहा है"
"जी मुझे अपना जिस्म हल्का महसूस हो रहा है । और चूत में भी अब सिहरन नहीं हो रही है । मगर बापूजी मैंने आपके चेहरे पर मूत दिया" मैंने भोलेपन से कहा।
"नही बेटी यह तुम्हारा मूत नहीं है, यह तुम्हारी चूत का पानी है जो मरद से सेक्स करते वक़त मज़े से औरत की चूत से निकलता है" बापू ने मुझसे कहा।
"बापु जी सच में मुझे बुहत मजा आ रहा था जिस वक़त मेरा पानी निकला मुझे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे मैं जन्नत की सैर कर रही थी" मैने बापू की बात सुनते हुए कहा।
"बेटी अभी तुमने मजा लिया कहाँ है यह लंड जब तुम्हारी चूत में जाकर उसको गहराई तक रगड देगा तुम यह मज़ा भूल जाओगी" बापू ने अपनी धोती को उतारते हुए अपने लंड को सहलाते हुए कहा । कंचन तुम एतबार नहीं करोगी बापू जी लंड देखकर मेरा सारा बदन एक्साईटमेंट से फिर से काम्पने लगा।
बापु जी का लंड बिलकुल काला 9 इंच लम्बा और 3 इंच मोटा था, मेरी चूत यह सोचकर ही डर के मारे झटके खा रही थी की इतना बड़ा और मोटा लंड मेरी छोटी सी चूत में घुसेगा कैसे।
"बापु जी यह तो बुहत लम्बा और मोटा है,यह मेरी चूत में कैसे घुसेगा" मैंने बापू जी के मुसल लंड को ऑंखें फाड कर देखते हुए कहा ।
"बेटी भगवान ने औरत की योनि की दीवार बनायी ही ऐसी है के मरद का कितना भी बड़ा और मोटा लंड हो उसे वह अपने आप में समां लेती है । बस पहली बार थोडा दर्द होता है" बापू ने मुझे समझाते हुए कहा।
बापु जी हमें डर लग रहा है, यह बुहत लम्बा और मोटा है हमारी चूत फट जाएगी " मैंने डर के मारे बापू से कहा।
"बेटी तुम मुझ पर भरोसा करो। मैं तुझे बुहत आराम से चोदुँगा, इसे अपनी जाभ से गीला कर दो ताकी तुम्हें तकलीफ न हो" बापू जी नीचे से उठते हुए अपना लंड मेरे मूह के पास करते हुए बोले ।
मुझे बापू के लंड से अजीब गंध आ रही थी, मैंने अपनी जीभ निकालकर उनके लंड पर फिराने लगी । पहले मुझे उसके लंड का स्वाद अजीब लगा मगर फिर मुझे उसे चाटते हुए मजा आने लगा । मैंने बापू जी के पूरे लंड को अपनी जीभ से गीला कर दिया, बापू का लंड अब और ज्यादा अकड़ता हुआ और फूला हुआ लग रहा था ।
बापु अब मेरी टांगों को जो मैंने सिधी कर दी थी फिर से घुटनों तक मोड़ दिया और अपने लंड को मेरी फूली चूत पर रगडने लगे । बापू का लंड अपनी चूत पर लगते ही मेरा पूरा शरीर काम्पने लगा और मेरे मूह से सिसकियाँ निकलने लगी।
बापु ने अपना लंड अब मेरी चूत के दोनों होठो को खोलते हुए उसमें फँसा दिया । मेरा दिल आने वाले पल के बारे में सोचते हुए बुहत ज़ोर से धडक रहा था, बापू ने मेरी टांगों को पकड कर एक धक्का मारा। बापू जी का लंड मेरी चूत में जाने के बजाये फिसल कर बाहर आ गया ।
मेरा सारा शरीर गरम हो चुका था, मैंने बापू का लंड अपनी चूत में लेने के लिए उतावली हो रही थी । बापू का लंड दुसरी बार में भी अंदर जाने की बजाये फिसल गया।
"एक मिनट ठहरो बेटी" यह कहता हुआ बापू खटिया से उठकर किचन में चला गया । बापू जब लौटे तो उसके हाथ में मक्खन था, बापू ने मक्खन को मेरी चूत के छेद में अच्छी तरह से ड़ालते हुए बाकी का बचा हुआ अपने लंड पर लगा दिया ।
बापु ने इस बार अपने लंड को मेरी चूत में ड़ालने के बजाये अपनी एक ऊँगली मेरी छूट में डाल दी और उसे अंदर बाहर करने लगा । ऐसे ही बापू ने अब दो उँगलियाँ मेरी चूत में डालकर अंदर बाहर करने लाग, मुझे बापू की उँगलियों से बुहत मजा आ रहा था । मेरी चूत से पानी टपक रहा था और वह बिलकुल गीली हो चुकी थी।
बापु ने मेरी चूत के होंठो को खोलते हुए अपना लंड उनके बीच फँसा दिया । बापू ज़ोर का धक्का देने के बजाये अपने लंड को वहां पर ही हलके हलके धक्कों के साथ सेट करने लगे । मेरा पूरा शरीर पसीने से भीग चूका था और मेरा सारा शरीर एक्साईटमेंट में कांप रहा था, मैं चाहती थी की बापू जल्दी से अपना लंड मेरी चूत में पेल दे । ऐसा करने से बापू जी लंड का मोटा टोपा मेरी चूत के होंठो को फ़ैलाता हुआ अंदर फँस चूका था ।
बापु जी डाल दो न बुहत तडपा लिया" मैंने सिसकते हुए बापू से कहा। बापू ने मेरी बात सुनकर मेरी टांगों को पकडते हुए मेरी चूत में अपने लंड को ज़ोर का धक्का दे दिया ।
"उईईईईईई माँ मर गयी ओह्ह्ह फट गयी निकाल लो बापू निकालो" एक ही धक्के में बापू का आधा लंड घूसने से मैं ज़ोर से चील्लाते हुए रोने लगी । बापू ने इतनी ज़ोर का धक्का मारा था की उसका आधा लंड मेरी चूत की झीली को तोड़ता हुआ मेरी चूत में घुस चूका था, मुझे ऐसे महसूस हो रहा था जैसे मेरी चूत को किसी ने काट कर दो टुकडो में तक़सीम कर दिया है।
मैं दर्द के मारे बुहत ज़ोर से चील्लाते हुए बापू को अपने ऊपर से दूर करने लगी । मगर बापू ने मुझे बुहत ज़ोर से जकड रखा था, वह अपना आधा लंड मेरी चूत में डाले ही मेरे ऊपर झुक गए ।
बापु मेरी एक चूचि को अपने मूह में भरकर चूसने लगे, बापू बारी बारी मेरी दोनों चुचियों को चूसने लगे । बापू की मेरी चुचियों को चूसने से मुझे कुछ आराम मिला और मेरी चूत का दर्द भी कम होने लगा ।अब मेरे मूह से सिसकिया निकलने लगी ।
"बेटी अब दर्द कैसा है" बापू ने मेरी चुचियों से मूह हटाते हुए कहा।
"बापु अब कुछ काम है" मैंने सिसकते हुए कहा।
"बेटी देखना थोडी ही देर में तुम्हारा सारा दर्द ख़तम हो जायेगा और तुम मज़े लेकर चुदवाओगी" बापू ने मेरे ऊपर से उठते हुए कहा ।
बापु ने उठते हुए अपने लंड को मेरी चूत में धीरे धीरे आगे पीछे करना शुरू कर दिया।
"आजहहह ओफ़्फ़्फ़ बापू दर्द हो रहा है" बापू का लंड अपनी चूत में आगे पीछे होते ही मेरी चूत फिर से दर्द करने लगी जिस वजह से मैंने चिल्लाते हुए कहा।
"बेटी थोडा सबर कर तुम्हारा दर्द ग़ायब हो जाएगा। तुम्हारी चूत बुहत टाइट है इसीलिए ज़्यादह तकलीफ हो रही है" बापू ने वैसे ही धीरे से अपना लंड अंदर बाहर करते हुए कहा ।
थोड़ी ही देर बाद मेरी चूत में दर्द बुहत कम हो गया और बापू जी का लंड अंदर बाहर होने से मुझे मजा आने लगा।
"आजहहह इसशह बापू जी मुझे अब मजा आ रहा है" मैंने अपने चूतड उछालते हुए बापू से कहा।
"बेटी मैंने कहा था न की थोडी देर में तुझे मजा आने लगेंगा" बापू ने खुश होते हुए कहा ।
"हाहह बापू मुझे आपके लंड की रगड पागल बना रही है, अपना लंड मेरी चूत में थोडा तेज़ी के साथ अंदर बाहर करो" अब मुझे बापू का लंड इतना मजा दे रहा था की मैंने उसे तेज़ी के साथ अपना लंड बाहर करने को कहा ।
बापु मेरी बात सुनकर अपने लंड को तेज़ी के साथ अंदर बाहर करने लगे, मेरा पूरा शरीर अकडने लगा और मज़े से मेरे मूह से ज़ोर की सिस्क़िया निकलने लगी । बापू के लंड के हर धक्के के साथ मेरा पूरा जिस्म मज़े से काप उठता और मैं चिल्लाते हुए बापू को जोश दिलाने लगी "हाँ बापू ऐसे ही ज़ोर लगा कर धक्का मारो"।
मैं झरने के बिलकुल क़रीब थी इसीलिए मज़े से मुझे पता ही नहीं चल रहा था की बापू अपना लंड मेरी चूत में 7 इंच तक घुसा चुके हैं । बापू के हलके धक्कों से उसका लंड और आगे नहीं जा रहा था ।
अचानक मेरा बदन टूटने लगा और में अपने चूतड़ उछालते हुए दूसरी बार झरने लगी।
"यआह्ह्ह्ह शहहह बापू ओह्ह्ह ज़ोर से मुझे चोदो।मैं झर रही हूँ" मज़े से मैंने अपनी आँखें बंद करके सिसकते हुए कहा ।
बापु ने मुझे झरता हुआ देखकर अपने लंड को ज़ोर से मेरी चूत में अंदर बाहर करने लगा । मेरी चूत से जाने कितनी देर तक पानी निकलता रहा, जब मेरा झरना बंद हुआ तो मैंने अपनी आँखें खोली ।
बापु ने मुझे देखकर मेरी टांगों को मज़बूती से पकडते हुए अपने लंड को पीछे खींचते हुए 4-5 ज़ोर के धक्के मार दिए जिससे उनका बचा हुआ लंड भी मेरी चूत में जगह बनाता हुआ अंदर घुस गया ।
"उई माँ ओह्ह्ह बापु" मेरी ऑंखों के सामने अँधेरा होने लगा, मुझे फिर से बुहत ज़ोर का दर्द होने लगा।
बापु मेरे चिल्लाने की परवाह न करते हुए अपना लंड बुहत ज़ोर से मेरी चूत में अंदर बाहर करने लगे। 9-10 धक्कों के बाद ही मेरी चूत का दर्द ग़ायब हो गया और मुझे मजा आने लगा ।
बापु का लंड मेरी चूत के आखरी हिस्से तक जाकर मेरी बचचेदानी को ठोकरें मार रहा था । बापू का लंड जैसे ही पूरा अंदर घुसता मेरा अंग अंग काम्प उठता, मुझे इतना मजा आ रहा था की मैं बापू का लंड निकलते ही अपने चूतड़ ऊपर उछालते हुए उसे अपनी चूत में वापस लेने लगती और बापू जैसे ही अपना लंड ज़ोर से मेरी चूत में पेलते मेरे मूह से ज़ोर की सिसकी निकल जाती ।
बापु भी अपना पूरा लंड बाहर निकालकर अंदर डाल रहे थे, उनके हर धक्के के साथ मेरा पूरा शरीर हिल रहा था । बापू ५ मिनट तक मेरी चूत में अपना मुसल लंड अंदर बाहर करने के बाद हाँफने लगे ।
मैंने महसूस किया की बापू का लंड मेरी चूत में फूल रहा है । बापू का लंड फूलने से उनका लंड मुझे अपनी चूत में ज़ोर की रगड देने लगा, आअह्ह्ह बेटी ओह्ह्ह मैं आया । बापू ने इतना ही कहा था की उनके लंड से कुछ गरम निकलकर मेरी चूत में गिरने लगा, मेरी चूत उस गरम अह्सास के साथ ही झटके खाने लगी और मैं भी आह्ह्ह्ह इश करते हुए तीसरी बार झरने लगी।
बापु जी झरने के बाद मेरे ऊपर ही ढेर हो गये और मेरे होंठो को चूमते हुए कहने लगे "बेटी तुम बुहत अच्छी हो, मेरा कितना ख़याल करती हो" । बापू ने उस रात मुझे दो बार और चोदा, इस बार उन्होंने मुझे कई तरीक़ों से चोदा।
तींन बार की चुदाई के बाद हम दोनों को गहरी नींद आ गयी । सुबह जब मैं उठी तो खटिया पर बिछायी चादर को देखकर चोंक गयी ।
चादर पूरी मेरी चूत के निकले खून से लाल हो चुकी थी । मैंने घबराते हुए बापू को उठाया, बापू ने मुझे कहा "यह खून पहली बार में हर लड़की से निकलता है, तुम्हें घबराने के कोई ज़रुरत नही।
मैं खटिया से उठकर बाथरूम जाने लगी, मैं ठीक तरह से चल भी नही पा रही थी और मेरी चूत तीन बार बापू के मुसल लंड से चुदकर सुज चुकी थी । उस दिन बापू मेरे लिए पेन किलर गोलियां ले आये जिन्हें खाकर मेरा दर्द कम हो गया और तब से जब तक मैं बापू के साथ थी ।वह मुझे डेली चोदते थे।घर में हर जगह उन्होंने मुझे चोदा।रात तो रात दिन में भी वो मुझे चोदते थे।हर जगह उन्होंने मुझे चोदा।किचन में बाथरूम में छत पर आँगन में।
मैं अपने बाप का एक बच्चा भी गिरा चुकी हूँ । यहाँ आने के बाद मुझे अपनी चूत की खुजली तंग करने लगी, इसीलिए मैंने कॉलेज में अपने कई दोस्त बना लिये जो मेरी चूत की खुजलि मिटाते हैं ।
कंचन अपनी सहेली की सारी बात सुनकर हैंरान रह गयी।
"कंचन अब बता क्या कहती हो?" नीलम ने कंचन से पुछा।
"नीलम तुम्हारी बात सुनकर मेरी हालत ख़राब हो गई है" कंचन ने नीलम से कहा।
"तो आज ही विजय का लंड अपनी चूत में ले ले" नीलम ने कंचन को कहा ।
"नीलम सच बताओं मैंने अपने भाई को अपने हुस्न का जलवा दिखाया है और वह मुझ पर लटू हो गया है" कंचन ने नीलम से कहा।
"तो प्रॉब्लम क्या है, ले ले अपने भाई से" नीलम ने खुश होते हुए कहा ।
"नीलम मैं अपने भाई के लंड से डर गयी थी, उसका बुहत लम्बा और मोटा है" कंचन ने नीलम से कहा।
"अरे पगली तुम तो ख़ुशनसीब हो जो घर में ही तगडा लंड मिल गया, जल्दी से उससे छुडवाले कुछ नहीं होगा तुम्हें" नीलम ने कंचन को समझाते हुए कहा । दोनों को बातों बातों में पता ही नहीं चला। कॉलेज की छुट्टी हो चुकी थी।
कंचन ने नीलम से कहा "छुट्टी हो गई है, भैया मेरा इंतज़ार कर रहे होंगे"।
"हा अब तुम हमें लिफ्ट कहाँ दोगी, जाओ अपने बड़े लंड वाले भैया के पास" नीलम ने कंचन को चिढाते हुए कहा ।
"नीलु की बच्ची में तुम्हें नहीं छोड़ूँगी" नीलम की बात सुनकर कंचन ने धक्का देते हुए उसे बालों से पकड लिया।
"ओह सॉरी छोड़ दे आगे से नहीं कहूँगी" नीलम ने दर्द से चिल्लाते हुए कहा । कंचन वहां से उठकर कॉलेज से बाहर जाने लगी ।
गेट पर विजय और कोमल खडी थी । तीनों साथ में एक रिक्शा पर बैठ गये, रिक्शा के चलते ही कंचन ने अपना हाथ विजय की जाँघ पर रख दिया । विजय अपनी बड़ी बहन का हाथ अपनी जाँघ पर महसूस करते ही सिहर उठा।
कंचन अपना हाथ वहीँ रखे ही विजय से बातें करने लगी । कंचन रिक्शा में बीच में बैठी थी और वह थोडा आगे सरक कर बैठी थी जिस वजह से कोमल को कुछ नज़र नहीं आ रहा था । विजय ने भी मोका देखकर अपना हाथ अपनी बड़ी बहन के हाथ के ऊपर रख दिया।
विजय अपने हाथ से अपनी बड़ी बहन का हाथ सहलाने लगा । कंचन ने भी कोई विरोध नहीं किया, अचानक कंचन को ऐसा महसूस हुआ की उसका हाथ आगे सरक रहा है, कंचन ने देखा की उसका भाई उसके हाथ को आगे सरकाते हुए अपनी पेंट की तरफ कर रहा है ।
कंचन ने अपने हाथ को ढीला छोड दिया । विजय ने अपनी बड़ी बहन का हाथ ढीला होते ही अपनी पेंट की ज़िप के अंदर रख दिया, कंचन का सारा शरीर सिहर उठा क्योंके विजय की पेंट की ज़िप खुली हुयी थी ।
कंचन को अपना हाथ ठीक अपने छोटे भाई के अंडरवियर में खडे लंड पर महसूस हुआ । कंचन जानबूझकर अपना हाथ अपने छोटे भाई के अंडरवियर पर घुमाने लगी, विजय अपनी बहन का हाथ अपने अंडरवियर में खडे लंड पर पड़ते ही मज़े से हवा में उड़ने लगा ।
कंचन ने अपने छोटे भाई के लंड को सहलाते हुए उसे अचानक अपनी ऊँगली दबा दिया और अपना हाथ वहां से खींचकर दूर कर दिया, आअह्ह्ह अपने लंड पर दबाव पड़ते ही विजय के मूह से हलकी चीख़ निकल गई।
"क्या हुआ भाई?" कंचन ने अन्जान बनते हुए विजय से कहा।
"कुछ नहीं मच्छर ने काट दिया" विजय ने जल्दी से कहा।
"यहां पर भी मच्छर है" कंचन ने हँसते हुए कहा । अचानक रिक्शा रुक गया उनका घर आ चुका था ।
सभी खाना खाने के बाद सोने के लिए अपने कमरों में चले गए । कंचन की आँखों से नींद ग़ायब थी वह सोच रही थी की कब रात हो और वह अपना भैया का लंड अपनी चूत में ले, अचानक उसने सोचा क्यों न वह अपने भैया के कमरे में जाकर देखे की वह क्या कर रहा है ।
कंचन अपने कमरे से जाते हुए अपने भाई के रूम में आ गयी । कंचन ने अंदर आते ही दरवाज़ा अंदर से बंद कर दिया, कंचन ने देखा की विजय बाथरूम में नहा रहा है। वह चुपचाप वहां बेड पर जाकर बैठ गयी ।
विजय ने जैसे ही नहाने के बाद अपना जिस्म टॉवल से पोछ लिया उसे याद आया के वह नए कपड़े तो लाना भूल गया । विजय वह छोटा सा टॉवल ही लपेट कर बाहर निकलने लगा, बाथरूम का दरवाज़ा खोलते ही उसे सामने बेड पर अपनी बड़ी बहन बैठी हुयी नज़र आई।
विजय ने पहले सोचा के पुराने कपडे ही पहन लेता हूं। मगर अचानक उसके दिमाग में ख्याल आया अरे पागल इतना अच्छा मौका को हाथ से जाने दे रहे हो और वह दरवाज़ा खोलते हुए गाना गाता हुआ बाहर आ गया जैसे उसने अपनी बड़ी बहन को देखा ही न हो ।
कंचन का जिस्म अपने भाई को सिर्फ टॉवल में देखकर गुदगुदी करने लगा, "वीजू तुम्हें शर्म नहीं आती नंगे होकर कमरे में आ गये" कंचन ने विजय को डाँटते हुए कहा।
"दीदी तुम कब आई" विजय ने चौंकने का नाटक करते हुए कहा ।
"अभी आई हूँ" कंचन ने जवाब दिया।
"मैं कपडे लेना भूल गया था, वैसे भी तुम मेरी गर्लफ्रेंड हो और मुझे एक बार नंगा देख चुकी हो" विजय ने अलमारी से अपने कपडे निकालते हुए कहा ।
"वीजू वह रात थी और अब दिन है" कंचन ने अपने भाई के गोरे जिस्म को निहारते हुए कहा।
"दीदी तुम मुझे बुध्धू मत बनाओ रात थी तो क्या हुआ। तुम ने तो सब कुछ देख लिया था" विजय ने कपड़े निकालने के बाद अलमारी को बंद करते हुए कहा । विजय ने अचानक अपना टॉवल निकाल लिया और बिलकुल नंगा होकर उस टॉवल से अपनी टांगों को पोंछने लगा।
कंचन की आँखें अचानक दिन के उजाले में अपने भाई को बिलकुल नंगा देखकर फटी की फ़टी रह गयी । विजय का लंड तना हुआ झटके मार रहा था, कंचन अपने भाई के लंड को गौर से देखने लगी ।
विजय का लंड बिलकुल गोरा था । कंचन को अपने छोटे भाई के लंड का गुलाबी मोटा सुपाडा बुहत अच्छा लग रहा था, कंचन सोच रही थी की जब मौका मिला मैं विजु के लंड के गुलाबी सुपाडे को ज़रूर अपने मूह में लेकर चूसुंगी ।
"वीजू तुम बिलकुल बेशरम हो गये हो" कंचन ने वैसे ही अपने भाई के लंड की तरफ देखते हुए कहा।
"दीदी सच कहो तो तुम्हें देखकर कपड़े पहनने का मन ही नहीं करता" विजय ने टॉवल को बेड पर रखते हुए कहा।
"वीजू तुम्हें ऐसा क्या दिख गया मुझ में जो नंगे ही रहना चाहते हो" कंचन ने मन ही मन में खुश होते हुए कहा।
"दीदी तुम्हारा जिस्म ऐसा है की कपड़ों में होते हुए भी तुम्हें देखकर मेरा लंड उछलने लगता है" विजय ने नंगे ही बेड पर बैठते हुए कहा।
"वीजू सच बताओ तुम्हें मेरे जिस्म की कौन सी चीज़ ज़्यादा पसंद है" कंचन अपने भाई को नंगा ही अपने क़रीब देखकर तेज़ साँसें लेते हुए बोली।
"दीदी वैसे तो आपकी हर चीज़ अच्छी लगती है, मगर आपकी चुचियां और आपके गुलाबी होंठ मुझे सब से ज़्यादा अच्छे लगते हैं" विजये ने अपने बहन के हाथ को पकड़ते हुए कहा ।
"वीजू तुम्हे सच में मैं तुम्हें इतनी अच्छी लगती हूँ ?" कंचन अपने भाई का हाथ अपने हाथों में आते ही तेज़ धडकनों के साथ उससे पूछा।
विजय ने देखा की उसकी बहन की चुचियां बुहत ज़ोर से ऊपर नीचे हो रही थी और उसका कन्धा नीचे झुका हुआ था ।
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